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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भविष्य पुराण

भविष्य पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1193
आईएसबीएन :81-293-0251-9

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प्रस्तुत भविष्यपुराण में भगवान सूर्य की महिमा का वर्णन किया गया है....

Bhavishya Puran a hindi book by Gitapress - भविष्य पुराण - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नम्र निवेदन

विषय-वस्तु, वर्णनशैली तथा काव्य-रचना की द्रष्टि से भविष्यपुराण उच्चकोटि का ग्रन्थ है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, आख्यान-साहित्य, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद से सम्बन्धित विषयों का अद्भुत संयोजन है। इसकी कथाएँ रोचक तथा प्रभावोत्कपादक हैं। यह पुराण ब्रह्म, मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तर-इन चार प्रमुख पर्वों में विभक्त है। मध्यमपर्व तीन तथा प्रतिसर्गपर्व चार अवान्तर खण्डों में विभक्त है। पर्वों के अन्तर्गत अध्याय हैं, जिनकी कुल संख्या 485 है। यह पुराण भगवान् सूर्य की महत्ता का सुन्दर प्रतिपादक है। प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय खण्ड के 23 अध्यायों में वेताल-विक्रम-सम्वाद के रूप में कथा-प्रबन्ध है, वह अत्यन्त रमणीय तथा मोहक है, रोचकता के कारण ही यह कथा-प्रबन्ध गुणाढय की ‘बृहत्कथा’, क्षेमेन्द्र की ‘बृहत्कथा-मंजरी, सोमदेव के ‘कथा-सरित्सागर’ आदि में वेतालपञ्चविंशति के रूप में संगृहीत हुआ है। भविष्य पुराण की इन्हीं कथाओं का नाम ‘वेतालपञ्चविंशति’ या ‘वेतालपञ्चविंशतिका’ है। इसी प्रकार प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय खण्डके 24 से 29 अध्यायों तक उपनिबद्ध ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ उत्तम कथा-साहित्य है। उत्तरपर्व में वर्णित व्रतोत्सव तथा दान-माहात्म्य से सम्बद्ध कथाएँ भी एक से बढ़कर एक हैं।

ब्राह्मपर्व तथा मध्यमपर्व की सूर्य-सम्बन्धी कथाएँ भी कम रोचक नहीं हैं। आल्हा-उदल के इतिहास का प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराण के आधारपर प्रचलित है।

भविष्यपुराण की दूसरी विशेषता यह है कि यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है। इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहासकी महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकोंने प्रायः इसीका आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि का प्रामाणिक इतिहास निरूपित है।

इस पुराण की तीसरी विशेषता यह है कि इसके मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्रमें मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है।

विषय-वस्तु की लोकोपयोगिता एवं पाठकों के बार-बार आग्रह को दृष्टिगत रखते हुए ‘कल्याण’ के छाछठवें वर्ष के विशेषांक के रूप में प्रकाशिकत ‘संक्षिप्त भविष्यपुराणांक’ को अब ‘संक्षिप्त भविष्यपुराण’ के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आशा है, गीताप्रेस से प्रकाशित अन्य पुराणों की भांति इस पुराण को भी अपनाकर पाठकगण इससे भरपूर लाभ उठावेंगे। आकर्षक लेमिनेटेड आवरण, मजबूत जिल्द, ऑफसेट की सुन्दर छपाई और उपासनायोग्य अनेक चित्र इसकी अन्य विशेषताएँ हैं।
प्रकाशक


।। ॐ श्री परमात्मने नमः।।
।। श्री गणेशाय नमः।।

।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।
संक्षिप्त भविष्यपुराण


ब्राह्मपर्व


व्यास-शिष्य महर्षि सुमन्तु एवं राजा शतानीकका संवाद, भविष्यपुराण की महिमा एवं परम्परा, सृष्टि-वर्णन, चारों वेद, पुराण एवं चारों वर्णों की उत्पत्ति, चतुर्विध सृष्टि, काल-गणना, युगों की संख्या, उनके धर्म तथा संस्कार



नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीयेत्।।


‘बदरिकाश्रमनिवासी प्रसिद्ध ऋषि श्रीनारायण तथा श्रीनर (अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण तथा उनके नित्य-सखा नरस्वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन), उनकी लीला प्रकट करने वाली भगवती सरस्वती और उनकी लीलाओं के वक्ता महर्षि वेदव्यास को नमस्कार कर जय—आसुरी सम्पत्तियों का नाश करके अन्तःकरणपर दैवी संपत्तियों को विजय प्राप्त करने वाले वाल्मीकीय रामायण, महाभारत एवं अन्य सभी इतिहास-पुराणादि सद्ग्रन्थों का पाठ करना चाहिए।’


जयति पराशरसूनुः सत्यवतीहृदयनन्दनो व्यासः।
यस्यास्यकमलगलितं वाङ्मयममृतं जगत पिबति।।


‘पराशर के पुत्र तथा सत्यवती के हृदय को आनन्दित करने वाले भगवान् व्यास की जय हो, जिनके मुखकमल से निःसृत अमृतमयी वाणी यह सम्पूर्ण विश्व पान करता है।’


यो गोशतं कनकश्रृंगमयं ददाति
विप्राय वेदविदुषे च बहुश्रुताय।


पुण्यं समं भविष्यसुकथां श्रृणुयात् समग्रां
पुण्यं समं भवति तस्य च तस्य चैव।।


‘वेदादि शास्त्रों के जाननेवाले तथा अनेक विषयों के मर्मज्ञ विद्वान ब्राह्मण को स्वर्णजटित सींगोंवाली सैकड़ों गौओं को दान देने से जो पुण्य प्राप्त होता है, ठीक उतना ही पुण्य इस भविष्यपुराण की उत्तम कथाओं के श्रवण करने से प्राप्त होता है।।

एक समय व्यासजी के शिष्य महर्षि सुमन्तु तथा वशिष्ठ, पराशर, जैमिनि, याज्ञवल्क्य, गौतम, वैशम्पायन, शौनक, अंगिरा और भारद्वाजादि महर्षिगण पांडव वंश में समुत्पन्न महाबलशाली राजा शतानीक की सभा में गये। राजाने उन ऋषियों का अर्घ्यादि से विधिवत् स्वागत-सत्कार किया और उन्हें उत्तम आसनों पर बैठाया तथा भलीभाँति उनका पूजन कर विनय पूर्वक इस प्रकार प्रार्थना की—‘हे महात्माओं ! आपलोगों के आगमन से मेरा जन्म सफल हो गया। आपलोगों के स्मरणमात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है, फिर आपलोग मुझे दर्शन देने के लिए यहाँ पधारे हैं, अतः आज मैं धन्य हो गया। आपलोग कृपा करके मुझे उन
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 ‘जय’ शब्द की व्याख्या प्रायः कई पुराणों में आयी है। भविष्यपुराण के ब्राह्मपर्व के चौथे अध्याय (श्लोक 86 से 88)-में इसे विस्तार से समझाया गया है, वहाँ देखना चाहिये।

पवित्र एवं पुण्यमयी धर्मशास्त्र की कथाओं को सुनायें, जिनके सुनने से मुझे परमगति की प्राप्ति हो।’

ऋषियों ने कहा हे राजन् ! इस विषय में आप हम सबके गुरु, साक्षात् नारायणस्वरूप भगवान् वेदव्यास से निवेदन करें। वे कृपालु हैं, सभी प्रकार के शास्त्रों के और विद्याओं के ज्ञाता हैं। जिसके श्रणवमात्र से मनुष्य सभी पातकों से मुक्त हो जाता है, उस ‘महाभारत’ ग्रन्थ के रचयिता भी यही हैं।

राजा शतानीक ने ऋषियों के कथनानुसार सभी शास्त्रों के जाननेवाले भगवान् वेदव्यास से प्रार्थनापूर्वक जिज्ञासा की—प्रभो ! मुझे आप धर्ममयी पुराण-कथाओं का श्रवण करायें, जिससे मैं पवित्र हो जाऊँ और इस संसार-सागर से मेरा उद्धार हो जाय।

व्यासजी ने कहा—‘राजन् ! यह मेरा शिष्य सुमन्तु महान् तेजस्वी एवं समस्त शास्त्रों का ज्ञाता है, यह आपकी जिज्ञासाको पूर्ण करेगा। ‘मुनियों ने भी इस बात का अनुमोदन किया। तदनन्तर राजा शतानीक ने महामुनि सुमन्तु से उपदेश करने के लिये प्रार्थना की—हे द्विजश्रेष्ठ ! आप कृपाकर उन पुण्यमयी कथाओं का वर्णन करें, जिनके सुनने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

महामुनि सुमन्तु बोले— राजन ! धर्मशास्त्र सबको पवित्र करने वाले हैं। उनके सुनने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। बताओ, तुम्हारी क्या सुनने की इच्छा है ?

राजा शतानीक ने कहा—ब्राह्मणदेव ! वे कौनसे धर्मशास्त्र हैं, जिनके सुनने से मनुष्य पापोंसे मुक्त हो जाता है।

सुमन्तु मुनि बोले—राजन् ! मनु, विष्णु, यम, अंगिरा, वसिष्ठ, दक्ष, संवर्त, शातातप, पराशर, आपस्तम्ब, उशना, कात्यायन, बृहस्पति, गौतम, शंख, लिखित, हारीत तथा अत्रि आदि ऋषियों द्वारा रचित मन्वादि बहुत-से धर्मशास्त्र हैं। इन धर्मशास्त्रों को सुनकर एवं उनके रहस्यों को भलीभाँति हृदयंगम कर मनुष्य देवलोक में जाकर पर आनन्दको प्राप्त करता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।

शतानीक ने कहा —प्रभो ! जिन धर्मशास्त्रों को आपने कहा है, उन्हें मैंने सुना है। अब इन्हें पुनः सुनने की इच्छा नहीं है। कृपाकर आप चारों वर्णों के कल्याण के लिये जो उपयुक्त धर्मशास्त्र हो उसे मुझे बतायें।

सुमन्तु मुनि बोले—हे महाबाहो ! संसार में निमग्न प्राणियों के उद्धार के लिए अठारह महापुराण, श्रीरामकथा, तथा महाभारत आदि सद्ग्रन्थ नौकारूपी साधन हैं। अठारह महापुराणों तथा आठ प्रकार के व्याकरणों को भलीप्रकार समझकर सत्यवती के पुत्र वेदव्यासजी ने ‘महाभारतसंहिता’ की रचना की जिसके सुननेसे मनुष्य ब्रह्महत्या के पापोंसे मुक्त हो जाता है। इनमें आठ प्रकार के व्याकरण ये हैं— ब्रह्म, ऐन्द्र, याम्य, रौद्र, वायव्य, वारुण, सावित्र्य तथा वैष्णव। ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, नारदीय, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्सय, गरुड़ तथा ब्रह्माण्डये—ये आठारह पुराण हैं। ये सभी-चारों वर्णों के लिये उपकारक हैं। इनमें से आप क्या सुनना चाहते हैं ?


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